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मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

Bhagvan mahaveer story

साहस परीक्षा
जब महावीर कुछ कम आठ वर्ष के थे, अपने समवयस्क राजपुत्रों के साथ
क्रीड़ा करते हुए उद्यान में ग़ए और संकुली नामक खेल खेलने लगे। उधर शकेन्द्र
ने देव सभा में कहा कि अभी भरत क्षेत्र में बालक वर्द्धमान ऐसे धीर, वीर और
साहसी हैं कि कोई देव-दानव भी उन्हें पराजित नहीं कर सकता। इन्द्र की बात
का और तो सभी देवों ने आदर किया, परन्तु एक देव ने विश्वास नहीं किया। वह
परीक्षा करने के लिए चला और उद्यान में जा पहुँचा। उस समय बालकों में वृक्ष को
स्पर्श करने की होड़ लगी हुई थी। देव ने भयानक सर्प का रूप बनाया और उस
वृक्ष के तने पर लिपट गया। फिर फन फैलाकर फुफ्कार करने लगा। एक भयानक
विषधर को आक्रमण करने में तत्पर देखकर, डर के मारे अन्य सभी बालक भाग
गए। महावीर तो जन्मजात निर्भय थे। उन्होंने साथियों को धैर्य बँधाया और स्वयं
सर्प के निकट जाकर और रस्सी के समान पकड़कर दूर ले जाकर छोड़ दिया।

अब वृक्ष पर चढ़ने की स्पर्धा प्रारम्भ हुई। शर्त यह थी कि विजयी राजपुत्र,
पराजित की पीठ पर सवार होकर, निर्धारित स्थान पर पहुँचे । वह देव भी एक
राजपुत्र का रूप धारण कर उस खेल में सम्मिलित हो गया। महावीर सबसे पहले
वृक्ष के अग्रभाग पर पहुँच गए और अन्य राजकुमार बीच में ही रह गए। देव को तो
पराजित होना ही था, वह सब से नीचे रहा। विजयी महावीर उन पराजित कुमारों
की पीठ पर सवार हुए। अन्त में देव की बारी आई। वह देव हाथ-पाँव भूमि पर
टिका कर घोड़े जैसे हो गया। महावीर उसकी पीठ पर चढ़ कर बैठ गए। देव ने
अपना रूप बढ़ाया। वह बढ़ता ही गया, एक महान पर्वत से भी अधिक ऊँचा उसके
सभी अंग बढ़कर विकराल बन गए । मुँह पाताल जैसा एक महान खड्डा,तक्षक नाग जैसी लपलपाती हुई जिह्वा, मस्तक के बाल पीले और खीले जैसे खड़े हुए, उसकी दाड़े करवत के दाँतों के समान तेज, आँखें अंगारों से भरी हुई
सिगड़ी के समान जाज्वल्यमान और नासिका के छेद पर्वत की गुफा के समान
दिखाई देने लगे। उसकी भृकुटी सर्पिणी के समान थी । वह भयानक रूपधारी देव
बढ़ता ही गया।
उसकी अप्रत्याशित विकरालता देखकर महावीर ने ज्ञानोपयोग लगाया। वे
समझ गए कि यह मनुष्य नहीं, देव है और मेरी परीक्षा के लिए ही मानवपुत्र बनकर
मेरा वाहन बना है। उन्होंने उसकी पीठ पर मुष्टि प्रहार किया, जिससे देव का बढ़ा
हुआ रूप तत्काल वामन जैसा छोटा हो गया। देव को इन्द्र की बात का विश्वास हो
गया। उसने महावीर से क्षमा याचना की और नमस्कार करके चला गया।

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