भगवान महावीर जब आठ वर्ष के हो गए, तब उनके माता-पिता ने कलाचार्य
के पास उन्हें पढ़ने के लिए भेजा।
भगवान महावीर की बुद्धि बहुत ही तीव्र थी। विद्याचार्य जी जिस समय भगवान
को पढ़ा रहे थे, उस समय इन्द्र पंडित के रूप में आकर विद्याचार्य से गहन और
तात्विक प्रश्न पूछने लगा। इन्द्र के प्रश्न सुनकर विद्याचार्य अवाक् हो गए। आचार्य
के भावों को जानकर भगवान् ने बड़ी नम्रतापूर्वक अनुमति मांगी कि क्या इन प्रश्नों
का उत्तर मैं दे देँ?
|
शिक्षक की अनुमति प्राप्त कर भगवान महावीर ने इन्द्र के प्रश्नों का उत्तर
सुन्दरता एवं शीघ्रता से दिया, जिसे सुनकर विद्याचार्य जी चकित रह गए ।
तब पंडित रूपधारी शकेन्द्र द्वारा भगवान् के भावी तीर्थंकर होने तथा जन्म
से ही अवधिज्ञानी होने का बोध कराया गया । तब विद्याचार्यजी ने बड़े ही
सम्मानपूर्वक राजकुमार वर्द्धमान को माता-पिता के पास पहुंचा कर कहा कि
आपका बालक तो स्वयं बुद्धिमान है, इसे पढ़ाने की योग्यता मुझ में नहीं है ।
इतने बुद्धिशाली भगवान महावीर ने भी इन्द्र के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए
विद्याचार्यजी से भी आज्ञा मांगी। भगवान् महावीर कितने विनयशील थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें