Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

शुक्रवार, 15 मई 2020

सकल तीर्थ वंदना sakal tirth vandna

सकल तीर्थ वंदना

रचनाकार- आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरिजी म.

तीर्थ वंदना भावे सार। श्री जिनराज करे भव पार।
जिन प्रतिमा जिन सम भवि जाण। वंदो सेवो भाव प्रमाण ॥१॥
प्रथम स्वर्ग में चैत्य नमो।। लाख बत्तीस नित्य प्रणमो।
लाख अट्ठाइस बारह जाण। दूजे तीजे चैत्य प्रमाण ।।२।।
चौथे पंचम लख अड़ चार। छठे सुर पचास हजार।
सप्तम चालीस सहस प्रासाद। वंदन से मिटता अवसाद ॥३॥
अष्टम स्वर्गे छः हजार। नव दशमे मंदिर शत चार।
ग्यारहवें बारहवें जाण। शत त्रय मंदिर पावन ठाण ।।४।।
नव ग्रैवेयक शतत्रि अठार। पांच अनुत्तर चैत्य विहार।
सब मिल अधिक चौरासी लाख। सहस सत्ताणुं तेइस आंक ।।५।।
सौ योजन लंबाई जान। पंचाशत चौडाई प्रमाण।
बहत्तर योजन ऊँचा कह्या। इक शत अस्सी सरदह्या॥६॥
सभा सहित इक चैत्य प्रमाण। इम फरमावे केवल नाण।
इक शत बावन क्रोड़ जुहार। चौराणु लख चुमाली हजार ॥७॥
शत सत षष्ठि उपर जाण। नमो नमो जगदीश महान्।
भवनपति में मंदिर कोड़। सत लख बहोतर नम कर जोड़ ॥८।।
एक एक जिनदेवल मांय। शत इक अस्सी बिंब समाय।
तेरह शत नव्वासी कोड़। साठ लाख वलि देऊँ जोड़ ।।९।।
तिर्यक् लोके देवल जान। पैंतीस सय सतरह परमाण। 
चार लाख बावीश हजार। दो सय अस्सी प्रतिमा सार ॥१०॥ 
ऋषभानन चंद्रानन नमो। वारिषेण वर्द्धमान नमो। 
इक सय सत्तर जिन भगवान। महाविदेह उत्कृष्टा जान ।।११।। 
नौ करोड छे केवल नाण। नेवू अरब छे साधु महान्। 
जघन्ये जानो श्री जिन बीस। कोटि दोय केवली जगदीश ।।१२।। 
बीस कोटि विहरे मुनिराय। वंदुं प्रणमुं शीष नमाय। 
अडछप्पनसत्ताणु हजार। चार सौ छियांसी चैत्य प्रकार ॥१३।। 
तीन लोक में मंदिर जान। निशदिन वंदूँ जिन गुणखान। 
नौ पच्चीस तिरेपन लाख। अठाइस चउ सय अठासी आंक ॥१४।। 
शाश्वत इतनी प्रतिमा जान। श्रद्धा से वंदो भगवान। 
अष्टापद वंदू चौबीस। गिरि सम्मेतशिखर जिन वीश ॥१५।। 
सिद्धाचल गिरि आदिनाथ। शंखेश्वर केसरियो साथ। 
नेमि जिनेश्वर गढ़ गिरनार। अंतरिक्ष नाकोड़ा सार ॥१६॥ 
नमो जीराउली पारसनाथ। जैसलमेर लोदरवा नाथ। 
तीर्थ ओसिया वीर जिणंद। तारंगा में विजया नंद ॥१७॥ 
सत्यपुरे जीवित महावीर। वंदन से पावो भव तीर। 
जल मंदिर श्री पावापुर। भेट्यां दु:ख सब जावे दूर ।॥१८॥ 
जहाज मंदिर में शांतिनाथ। पास अवन्ति पुर खंभात।
गाम गाम में जिन भगवान्। पूजो प्रतिमा धर श्रद्धान ।।१९।। 
नमो सीमंधर श्री भगवान्। विंशति प्रभुवर विहरमान। 
सिद्ध अनंत नमो धर भाव। आणो हृदये हर्ष उच्छाव ॥२०॥ 
तीर्थ जुहारूं भाव प्रकार। तीन काल वंदन सुखकार। 
वंदन हो युत मन वच काय। खरतर कान्ति मणि गुण गाय ॥२१।।

सोमवार, 4 मई 2020

Udhroj tirth


Udharoj tirth
.

लगभग 2200 वर्ष प्राचीन, राजा सम्प्रति कालीन, श्री अजितनाथ स्वामी प्रभु, उधरोज़ तीर्थ, गुजरात।
अर्हन्तमजितं विश्व कमलाकर भास्करम्।
अम्लान केवलादर्श सक्रान्त जगतं स्तुवे।।

जिस तरह सूर्य से कमल-वन आनन्दित होता है, उसी तरह जिस से यह सारा जगत् आनन्दित है, जिसके केवल क्षान रूपी निर्मल दर्पण में सारे लोकों का प्रतिबिम्ब पङता है, उस अजितनाथ प्रभु की स्तुति करते है।

Shiddhachal STUTI सिद्धाचल स्तुति

शत्रुंजय गिरी नमिये ऋषभदेव पुण्डरीक।
शुभ तप नी महिमा सुणी गुरुमुख निर्भीक।
शुद्ध मन उपवासे विधि शु चैत्यवंदनीक।
करिये जिन आगल टाली वचन अलीक।।

नेमिनाथ जिन चैत्यवंदन

श्री नेमिनाथ जिन चैत्यवंदन



प्रहसम प्रणमो नेमिनाथ, जिनवर जग जयवंत,
यादव कुल अवतंस हंस, उत्तम गुणवन्त।।1।।
समुद्र विजय शिवा देवी, जास मति सहज उदार,
सुन्दर श्याम शरीर ज्योति, सोहे सुखकार।।2।।
गढ़ गिरनारे जिण लह्यो ए, अमृतपद अभिराम,
तास क्षमा कल्याण मुनि, अहनिशि करे प्रणाम ।।3।।
(खरतरगच्छ साहित्य कोश क्रमांक- 3545)

शान्ति जिन चैत्यवंदन

श्री शान्ति जिन चैत्यवंदन

shantinath prabhu Hastinapur

सोलमा जिनवर शान्तिनाथ, सेवो शिरनामी,
कंचन वरण शरीर कांति, अतिशय अभिरामी।।।।।
अचिरा अंगज विश्वसेन, नरपति कुलचंद,
मृग लंछन धर पद कमल, सेवे सुर नर वृन्द ॥2।॥
जगमां अमृत जेहवी ए, जास अखंडित आण,
एक मनें आराधतां, लहिए कोडी कल्याण ॥। 3॥
(खरतरगच्छ साहित्य कोश क्रमांक- 3601)
क्षमाकल्याण कृति संग्रह [ भाग-१]/ 31

सिद्धाचलजी तीर्थ का चैत्यवंदन

श्री सिद्धाचलजी तीर्थ का चैत्यवंदन

siddhachal, palitana chaityavandn

जय जय नाभि नरिन्द नन्द, सिद्धाचल मंडण,
जय जय प्रथम जिणंद चन्द, भव दुःख विहण्डण।।।।।
जय जय साधु सुरिंद वृंद, वंदिय परमेसर,
जय जय जगदानन्द कन्द, श्री रिषभ जिणेसर ।।2।।
अमृतसम जिन धर्मनों ए, दायक जगमें जाण,
तुझ पद पंकज प्रीतिधर, निशदिन नमत कल्याण 13।।
खरतरगच्छ साहित्य कोश क्रमांक- 3520)

Lyrics Aankh mari ughade to Shankheshwar


shankheshwar
आंख मारी उघडे तो शंखेश्वर देखुं
मंदिर मां बैठा मारा पारसनाथ देखुं।
पारसनाथ देखुं तो मन हरखातुं
धन्य धन्य जीवन मारुं कृपा एवि लेखुं।।1।।
अंतर नी आंखों थी दर्शन करतां
नयणा अमारा निशदिन ठरता
तारी रे मूरतिए मारू मन ललचाणुं
धन्य धन्य जीवन मारुं कृपा एवि लेखुं।।2।।

Bhavobhav thi rah jou

Lyrics:
Bhavobhav thi raah jou,
virti ni waate jawa, Bhavobhav thi raah jou,
tara vesh ne paamwa, Tujne nirkahi dil maaru aa dhadki rahyu, 
Tuj waani thi manadu maru mohi gayu, Shamnama sadhu vesh ma mujne joya karu, 
Har pal rajoharan medwava zankhya karu,