गिरनार तीर्थ पर प्रतिष्ठित 22वे तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा की प्राचीनता
गत चौवीसी के तीसरे तीर्थंकर सागरप्रभु का जब केवलज्ञान कल्याणक हुआ, तब नरवाहन राजा ने समोवसरण मे सागरप्रभु से पूछा की मेरा मोक्ष कब होगा??
तब सागर तीर्थंकर ने बताया कि आवती चौवीसी के "22वे तीर्थंकर नेमिनाथ" के तुम "वरदत्त" नाम से प्रथम शिष्य (गणधर)बनकर मोक्ष पाओगे,
वैराग्य उत्पन्न होकर नरवाहन राजा का, सागर तीर्थंकर के पास दीक्षा लेकर आयुष्य पुर्ण कर पांचवे देवलोक मे 10सागरोपम की आयु वाला इन्द्र के रूप मे जन्म हुआ l
5वे देवलोक के इन्द्र (नरवाहन राजा) ने देवलोक मे अपने भावि उपकारी नेमिनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा बनाई, और अत्यन्त आनंद और भक्ति से उस प्रतिमा की देवलोक मे पूजा भक्ति करने लगा l
फिर प्रत्येक उत्कृष्ट भव पाकर वर्तमान चौविसी के 22वे तीर्थंकर नेमिनाथ के समय मे "पुण्यपाल राजा के रूप मे जन्म लेकर नेमिनाथ के पास दीक्षा लेकर उनके प्रथम गणधर वरदत्त बने l
समोसरण मे तीर्थंकर नेमिनाथ ने नरवाहन राजा का ,इन्द्र बनकर प्रतिमा बनाकर भक्ति करना और फिर कालक्रमे वरदत्त गणधर बनने की बात कही, तब समोवसरण मे दुसरे देवताओ ने कहा कि देवलोक मे उस प्रतिमा को हम आज भी शाश्वती प्रतिमा समझकर पूजा भक्ति करते है
चूंकि देवलोक मे शाश्वती प्रतिमा ही होती है इसलिये नेमिनाथ भ.ने वह अशाश्वती मूर्ति देवलोक से लाने को कहा, जिसे द्वारका के क्रष्ण राजा ने अपने राजमहेल मे प्रतिष्ठित कर पूजा भक्ति की, द्वारका नगरी विलुप्त होने पर शासन देवी अंबिका (अंबे मां) प्रतिमा को गिरनार की गुफा मे ले जाकर भक्ति करने लगी,
नेमिनाथ भगवान के निर्वाण के 2000वर्ष बीतने के बाद रत्नसार श्रावक द्वारा अवधि ज्ञानी आनंदसुरिजी आचार्य की प्रेरणा से वह मूर्ति अंबिका देवी से पाकर गिरनार के मंदिर मे प्रतिष्ठित कराई गई ,रत्नसारश्रावक द्वारा यह प्रतिमा को प्रतिष्ठित हुए "84,785" वर्ष हुए हैं
गत चौविसी के तीसरे सागर तीर्थंकर से वर्तमान समय तक श्री नेमिनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा ""165735वर्ष- न्यून , (कम) 20कोडाकोडी सागरोपम""वर्ष प्राचीन है l
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