उपाध्याय साधुकीर्ति रचित
जिनकुशलसूरि छन्द
विलसै ऋद्धि समृद्धि मिली, शुभ योगे पुण्य दशा सफली ।
जिनकुशलसूरि गुरु अतुल बली, मनवांछित आपे दादो रंग रली ।।१।।
मंगल लील समै विपुला, नवनवा महोच्छव राज्य कला |
सुपसायै गुरु चढती कला, सुकलीणी पुत्रवती महिला ।।२।।
सबही दिन थायै सबला, सद्वास कपूर तणा कुरला ।
हय गय रथ पायक बहुला, कल्लोल करे मन्दिर कमला ||३||
वीझै चमर निशान घूरे, नर वे दरबार खड़ा पहुरे ।
जय जय कर जोड़ी उचरे, सानिद्ध गुरु सब काज सरे ||४||
सरसा भोजन पान सदा, दु:ख रोग दुकाल न होय कदा ।
अविचल उल्लट अंग मुदा, गुरु कूरम दृष्टि प्रसन्न सदा ।।५।।
घम घम मद्दल नाद घुमे, बत्तीसे नाटक रंग रमे ।
प्रगट्यो पुण्य प्रताप हमें, सबला अरियण ते आय नमें ।।६।।
तन सुख मन सुख चीर तणे, पहिरे बेला उर होय रणे ।
ध्यावो कुशल गुरु एक मनै, जृंंभक सुर मन्दिर भरय धनै ।।७।।
ततखिन धन खंच्यो आवे, करी श्याम घटा मेह वरसावे ।
तिसियां तोय तुरत पावे, जलदाता त्रिजग सुजस गावै ||८||
लहर्या जल कल्लोल करे, प्रवहण भव सायर मज्झ डरे ।
वूडन्ता वाहन जे समरे, ते आपद निश्चय थी उबरे ।।९।।
खड़ खड़ खड़ग प्रहार वहै, सौदामिनी जिम समशेर सहै ।
कुशल कुशल गुरु नाम कहै, ते क्षेम कुशल रण मज्झ लहै ।।१०।।
थुंभ सकल परचा पूरे, श्री नागपुरे संकट चूरे ।
मंगलोरे अधिके नूरे, देराउर भय टाले दूरे ।।११।।
वीरमपुर वाने सुधरे, खंभायतपुर विक्रम नयरे ।
जिनचन्द्र सूरि पाटे पवरे, जसु कीरति मही मंडल पसरे ।।१२।।
पूरव पश्चिम दक्षिण आगे, उत्तर गुरु दीपे सोभागे ।
दह दिशि जन सेवा मांगे, श्री खरतर गच्छ नी महिमा जागे ।।१३।।
पुर पट्टन जनपद ठामे, गाईजे कुशल नयर गामे ।
पूजे जे नर हित कामे, ते चक्रवर्ति पदवी पामे ||१४||
श्री जिनकुशल सूरि शाखै, सेवक जन ने सुखिया राखै ।
समर्या गुरु दरसण दाखै, श्री 'साधुकीर्ति' पाठक भाखै ।।१५।।
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