20. देवीकोटनगर मंडन
श्री ऋषभ जिनेन्द्र स्तवन
(सोजितरो सिरदार दामांरो लोभीयो, ए देशी)
ऋषभ जिनेश्वर देव नमुं त्रिभुवन धणी हो लाल, नमुं त्रिभुवन धणी हो लाल।
नाभि नरेश्वर नंदन उदयो दिनमणि हो लाल, के उदयो.।।
श्री मरुदेवा मात सुतन गुण आगरु हो लाल, सुतन गुण.।
सोवनवण शरीर सदा सुख सागरु हो लाल, सदा सुख.।।1।।
वृषभ लांछन प्रभु पाय विराजे सुंदरु हो लाल, विराजो।
पांचसे धनुष प्रमाण शरीर सुहकरु हो लाल, शरीर.।।
युगला धर्म निवारक तारक जगतनो हो लाल, तारक.।
उत्तम धर्म प्रकाशक नाशक दुरित नो हो लाल, नाशक.।।2।।
लोक उचित व्यवहार सकल वरताय ने हो लाल, सकल.।
मुक्ति मंदिर प्रभु पहोता कर्म खपायने हो लाल, कर्म.।।
प्रभु मूर्ति सुखकार विराजे जगत में हो लाल, विराजे.।
ते देखी बहु भव्य मिथ्यामति गमें हो लाल, मिथ्या.।।3।।
जिनप्रतिमा जिन सारखी भाखी सूत्र में हो लाल, भाखी.।
तेहने सेवत भविजन भव में नहीं भमे हो लाल, भव में.।।
देवीकोट नगर श्रीसंघे जुक्तिशुं हो लाल, श्रीसंघे.।
बिंब भराया चैत्य कराया भक्तिशुं हो लाल, कराया.।।4।।
गच्छनायक जिनचंद पटोधर दीपता हो लाल, पटोधर.।
श्रीजिनहर्ष सूरींद कुमति मत जीपता हो लाल, कुमति.।।
वरस अढारे साठे शुदि वैशाख में हो लाल, शुदि.।
करीय प्रतिष्ठा सातम दिन उच्छरंग में हो लाल, दिन.।।5।।
मूलनायक श्री ऋषभ जिनेश्वर स्थापिया हो लाल, जिनेश्वर.।
संघ सकल घर हर्ष महोत्सव व्यापिया हो लाल, महोत्सव.।।
वरत्या जय जयकार घरोघर अति घणा हो लाल, घरोघर.।
दूर टल्या दु:ख दंद सकल श्रीसंघ तणा हो लाल, सकल.।।6।।
प्रभु गुण गातां आतम निर्मल संपजे हो लाल, निर्मल.।
ध्यातां हृदय मझार के निज कारज सरे हो लाल, निज.।।
वाचक अमृत धर्म पसाये इम भणे हो लाल, पसाये.।
शिष्य क्षमाकल्याण सुपाठक शुभ मने हो लाल, सुपाठक.।।7।।
(खरतरगच्छ साहित्य कोश क्रमांक-3526)
क्षमाकल्याण जी कृति संग्रह भाग 1 से साभार
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